संपादकीय (लेखक: Ashok Kumar Singh) अमेरिका के मिशिगन राज्य में स्थित एक छोटा शहर Hamtramck हाल ही में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बहसों का केंद्र बन गया है। जिस भूमि को कभी विविधता और उदारता का प्रतीक माना गया था, वहीं आज मजहबी कट्टरता, सांस्कृतिक संघर्ष और राजनैतिक ध्रुवीकरण के आरोपों की गूंज सुनाई देती है। यह घटनाक्रम केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक समाज के लिए चेतावनी है – जब उदारता सीमाओं को लांघती है और पहचान की राजनीति मजहब का चोला पहन लेती है।
उदारवाद: समावेशिता की शक्ति या आत्मघात?
Hamtramck कभी पोलिश-अमेरिकी बहुलता वाला क्षेत्र था। बीते दो दशकों में यह शहर मुस्लिम प्रवासियों – मुख्यतः यमनी, बांग्लादेशी और अल्बेनियाई – का प्रमुख गढ़ बन गया। लोकतंत्र के नाम पर उन्हें प्रतिनिधित्व मिला, और अंततः पूरी नगर परिषद तथा मेयर का पद भी उन्हीं के हाथ में आ गया।
यह कोई समस्या नहीं होती, अगर यह प्रतिनिधित्व विविधता और सहिष्णुता को मजबूती देता। परंतु जब 2023 में नगर परिषद ने LGBTQ+ समुदाय के प्रतीक ‘Pride Flag’ को सरकारी भवनों पर फहराने से मना कर दिया, तब यह स्पष्ट हो गया कि उदारवाद का हाथ थामकर आए कुछ समूह अब उसी उदारता के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
टकराव: मजहबी पहचान बनाम नागरिक अधिकार Hamtramck की स्थिति आज इस बात का प्रतीक है कि जब “हमारी धार्मिक मान्यताएं सर्वोपरि हैं” की सोच लोकतांत्रिक संस्थानों पर हावी हो जाती है, तो विविधता दम घुटने लगती है। LGBTQ+ समुदाय, जिन्होंने कभी मुस्लिम प्रवासियों के अधिकारों के लिए खड़े होकर आवाज़ उठाई थी, आज खुद “प्रतिबंधित और बहिष्कृत” महसूस कर रहे हैं।
यह परिवर्तन कोई संयोग नहीं, बल्कि एक वैचारिक गतिरोध है – जहाँ धर्मनिष्ठता का अतिरेक, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के मूल्यों से टकरा रहा है।
लोगों का नजरिया: दो ध्रुवों में बंटा समाज Hamtramck जैसे मामलों में समाज दो हिस्सों में बंट जाता है:
1. पहला वर्ग इसे सांस्कृतिक अस्मिता और धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मानता है।
उनका कहना है – “अगर हम बहुमत में हैं, तो अपने धर्म के अनुसार निर्णय लेना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है।”
2. दूसरा वर्ग इस रुख को असहिष्णुता और उदारवाद के दुरुपयोग के रूप में देखता है।
वे पूछते हैं – “क्या किसी बहुसंख्यक समूह को अल्पसंख्यकों के अधिकार छीनने का नैतिक या संवैधानिक अधिकार है?”
यह विचारधारा की लड़ाई नहीं, मूल्यों की लड़ाई है – जहाँ न्याय, समानता और स्वतंत्रता बनाम पहचान, परंपरा और धर्म आमने-सामने खड़े हैं।
समाज में महत्व: समझदारी और संतुलन का युग
Hamtramck का मुद्दा यह सिखाता है कि समाज की विविधता का सम्मान तभी संभव है जब हर समूह अपनी पहचान के साथ-साथ दूसरे की पहचान को भी बराबर माने।
किसी भी समुदाय का महत्व केवल उसकी संख्या या धार्मिक प्रभाव से नहीं, बल्कि उसके सह-अस्तित्व की भावना और न्यायप्रिय दृष्टिकोण से मापा जाना चाहिए। धर्म कोई समस्या नहीं है, पर जब धर्म राजनीतिक सत्ता और सामाजिक नियमों को नियंत्रित करने लगे, तब समस्या बन जाती है। Hamtramck की कहानी एक चेतावनी है
अगर उदारवादी समाजों ने अपनी नींव को मज़बूत नहीं किया, तो कट्टरपंथ उसी उदारता का प्रयोग करके उसे नष्ट कर देगा।
समाज को चाहिए कि वो न धर्म से डरे, न उदारता से बहके।
ज़रूरत है – विवेक की, सहिष्णुता की, और सबसे बढ़कर, न्याय की।
“जहाँ सभी को बोलने की आज़ादी है, वहाँ चुप रहने वालों की रक्षा भी ज़रूरी है।
जहाँ हर धर्म को सम्मान है, वहाँ हर विचार को स्थान भी मिलना चाहिए।”
अशोक कुमार सिंह (लेखक, विचारक, और सामाजिक विश्लेषक)