—चुनाव व्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग की प्रक्रिया को वैध ठहरा दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह प्रक्रिया संविधान के दायरे में है और इसे रोका नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय घुसपैठियों के कथित समर्थकों के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जबकि यह चुनाव आयोग के लिए एक कानूनी और नैतिक जीत है।
क्या है मामला?
चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू की थी। इस प्रक्रिया में संदिग्ध मतदाताओं की पहचान की जा रही है, जिसमें अवैध प्रवासियों और फर्जी नामों को हटाया जाना शामिल है।
हालांकि, इस प्रक्रिया को लेकर कुछ वकीलों और समूहों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और इस पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की मांग ठुकरा दी, कहा कि यह प्रक्रिया संविधान के तहत चुनाव आयोग का अधिकार है।
कोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार किया, पर प्रक्रिया के समय पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह कार्य पहले शुरू हो जाना चाहिए था।
अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, जबकि चुनाव आयोग यह प्रक्रिया 25 जुलाई तक पूरी करने की तैयारी में है।
आयोग की दलील
चुनाव आयोग ने अदालत को आश्वासन दिया कि किसी भी व्यक्ति को मतदाता सूची से हटाने से पहले उसे पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया जाएगा। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जाएगी।
राजनीतिक निहितार्थ
चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर देश के कई वरिष्ठ वकीलों ने सवाल उठाए थे, लेकिन वे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष संविधानिक आधार पर टिक नहीं पाए।
इस निर्णय को घुसपैठियों के समर्थन में खड़े लोगों की पराजय के रूप में देखा जा रहा है।
वहीं यह चुनाव आयोग की संवैधानिक शक्ति की पुष्टि भी है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का उत्तरदायित्व निभा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश चुनावी व्यवस्था की स्वायत्तता के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। इससे न केवल घुसपैठ की समस्या को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुचिता भी बनी रहेगी। अब बिहार में जारी मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया निर्बाध रूप से जारी रहेगी और अंतिम रिपोर्ट के साथ ही यह स्पष्ट होगा कि कितने फर्जी या अवैध नाम सूची से हटाए गए।