(हिन्द सागर प्रलोका)हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बादल फटने की घटना एक बार फिर यह सन्देश देती है कि प्रकृति की चेतावनी को नज़रअंदाज़ करना कितना घातक हो सकता है। सैंज, रेहला बिहाल और गड़सा जैसे इलाकों में आई अचानक बाढ़ ने पलभर में घर, स्कूल और वाहन निगल लिए, साथ ही कई ज़िंदगियाँ लील लीं।
यह सिर्फ़ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि व्यवस्थागत विफलता है। सवाल उठते हैं —
क्या मौसम विभाग की चेतावनी समय पर दी गई? क्या प्रशासन तैयार था? क्या लोगों को सतर्क किया गया? हर साल दोहराई जाने वाली इन घटनाओं के बावजूद आपदा प्रबंधन, चेतावनी प्रणालियों और मूलभूत ढाँचे में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। बदलते जलवायु के दौर में बारिश अब केवल “मौसम” नहीं, तबाही का संकेत है। समय है कि प्रशासन कागज़ों से बाहर निकले, मीडिया इसे महज़ ख़बर नहीं बल्कि चेतावनी का साधन बनाए और नागरिक सतर्कता को आदत में शामिल करें। अगर अब भी न चेते तो अगली त्रासदी कहीं और नहीं, हमारी दहलीज़ तक पहुँच सकती है।
“प्रकृति से मत टकराओ, उसके साथ चलना सीखो” — यह ही जीवन का मूलमंत्र है।