लेखक: अशोक कुमार सिंह, बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासनकाल (1990–2005) को ‘जंगलराज’ कहा गया — जहां अपहरण, हत्या, बलात्कार और राजनीतिक संरक्षण आम थे। इसी दौर में दलित महिला चम्पा विश्वास के साथ हुआ अत्याचार न केवल कानून-व्यवस्था की विफलता है, बल्कि भारत की न्यायिक व्यवस्था पर भी एक गंभीर प्रश्नचिन्ह है।
चम्पा विश्वास, वरिष्ठ दलित आईएएस अधिकारी बी.बी. विश्वास की पत्नी हैं। उनका आरोप है कि पटना में पोस्टिंग के दौरान राजद विधायक हेमलता यादव के बेटे मृत्युंजय यादव उर्फ बबलू यादव ने उनके साथ दो वर्षों तक बार-बार बलात्कार किया। चम्पा की मां, भतीजी और नौकरानियां भी इस हिंसा की शिकार बनीं। चम्पा पर इतना दबाव और डर था कि उन्होंने नसबंदी तक करा ली।
शिकायत के बावजूद प्रशासन मौन रहा। जब बी.बी. विश्वास ने मुख्यमंत्री लालू यादव से गुहार लगाई, तो जवाब मिला – “जिंदा हो, यही बहुत है।”
यह लोकतंत्र की विफलता नहीं तो और क्या है?
पीड़ित परिवार को अंततः बिहार छोड़कर बंगाल में शरण लेनी पड़ी। यह घटना बताती है कि उस दौर में न्याय केवल ताकतवरों की जागीर था। आज जब लालू यादव अपने पुत्र तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में हैं, यह जरूरी है कि बीते दौर के घाव भी याद रखे जाएं।
भाजपा ने इस मामले को दोबारा उठाकर इसे चुनावी मुद्दा बनाया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है —
क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेगी?
क्या दोषियों को सजा और पीड़िता को न्याय मिल पाएगा?
क्या यह लोकतंत्र में जवाबदेही और न्याय की विजय होगी?
चम्पा विश्वास का मामला केवल एक महिला का नहीं, पूरे व्यवस्था और संविधान की परीक्षा है। जब तक न्याय नहीं मिलता, यह सवाल उठता रहेगा।
(यह लेख समाज को जागरूक करने और न्याय की मांग को बल देने हेतु प्रकाशित किया गया है।)