हिन्द सागर प्रलोका, संवाददाता अशोक कुमार सिंह | मालेगांव (महाराष्ट्र)। 29 सितंबर 2008 की रात मालेगांव के भिक्खू चौक पर एक दोपहिया वाहन में विस्फोट हुआ, जिसमें छह लोगों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हो गए। धमाके के समय रमज़ान का महीना चल रहा था और इलाका मुस्लिम बहुल था। जांच का रुख: SIMI से ‘अभिनव भारत’ तक
प्रारंभिक जांच में संदेह इस्लामिक संगठन SIMI पर था, लेकिन ATS प्रमुख हेमंत करकरे के नेतृत्व में जांच का रुख बदला और हिंदू संगठन ‘अभिनव भारत’ जांच के घेरे में आया। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत आठ लोगों पर UAPA, हत्या और साजिश के तहत आरोप लगे।
17 साल बाद सभी आरोपी बरी 31 जुलाई 2025 को विशेष NIA कोर्ट ने सभी सात आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। कोर्ट ने टिप्पणी की, “सिर्फ संदेह से दोष सिद्ध नहीं होता, अभियोजन पक्ष के साक्ष्य पर्याप्त नहीं थे।”
राजनीतिक प्रतिक्रिया और पीड़ितों की पीड़ा
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने फैसले पर असंतोष जताते हुए कहा, “जिन्हें मारा गया, वे नमाज़ी थे; अब सवाल है, उन्हें मारा किसने?”
न्याय प्रक्रिया सवालों के घेरे में
यह मामला ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे विवादास्पद राजनीतिक शब्द के जरिए देश के सामाजिक-सांस्कृतिक विमर्श में छाया रहा। आज, जब आरोपी बरी हो चुके हैं, तब भी न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता और जांच की गंभीरता पर सवाल कायम हैं।मालेगांव ब्लास्ट भारतीय न्याय प्रणाली की गंभीर परीक्षा बन चुका है। 17 साल बाद भी जब दोषी तय नहीं हो सके, तो यह केवल सिस्टम नहीं, समाज के लिए भी आत्ममंथन का विषय है।