(हिन्द सागर प्रालोका, विशेष लेख) आज के दौर में आधार, पैन और पासपोर्ट जैसे दस्तावेज़ों को ही पहचान का आधार माना जाता है, मगर हाल ही में एयर इंडिया विमान हादसे ने यह सच्चाई उजागर कर दी कि संकट के क्षण में कागज़ और आईडी नहीं, बल्कि परिवार ही व्यक्ति की आख़िरी पहचान बनता है।
दुर्घटना में जले या क्षतिग्रस्त दस्तावेज़ों से मृतकों की शिनाख्त संभव नहीं हो पाई — वे केवल परिवार के डीएनए से पहचाने जा सके। यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि बदलते सामाजिक मूल्यों का आईना है। आज़ादी और व्यक्तिगत स्पेस के नाम पर युवा जिस तेजी से परिवार से दूर हो रहे हैं, वह चिंता का विषय है।
माता-पिता, भाई-बहन जैसे मूल रिश्ते, जो जीवन की नींव होते हैं, वे धीरे-धीरे उपेक्षित हो रहे हैं। यह लेख एक विनम्र स्मरण है कि परिवार को कभी औपचारिकता या बाध्यता न मानें, बल्कि संवाद और स्नेह का हिस्सा बनाएं। बच्चों को तकनीक और तरक्की के साथ-साथ संस्कार और आपसी जुड़ाव का पाठ पढ़ाना जरूरी है।
कागज़ और नाम मिट जाएं तो केवल एक बूंद रक्त यह कह पाता है — “यह व्यक्ति किसी का अपना था…”परिवार केवल रिश्ता नहीं, जीवन की आख़िरी पहचान है।