“हिन्द सागर’ प्रलोका “फिल्म समीक्षा” जब सिनेमा केवल मनोरंजन न रहकर समाज के उन अनदेखे कोनों को छूने लगे, जहाँ शब्द भी अक्सर पहुँच नहीं पाते — तब एक ऐसी फिल्म जन्म लेती है जो केवल देखी नहीं, महसूस की जाती है।
‘सितारे ज़मीन पर’, आमिर खान और जेनेलिया डिसूजा अभिनीत यह नवीनतम कृति, न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफल हुई है, बल्कि भारतीय जनमानस के हृदय में अपनी जगह बना चुकी है। इस फिल्म ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि सार्थक सिनेमा, यदि ईमानदारी से बनाया जाए, तो वह भीड़ खींच सकता है और व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी सफल हो सकता है।
आंकड़ों से परे एक भावनात्मक विजय,
जब 20 जून को यह फिल्म सिनेमाघरों में आई, तब ट्रेड विशेषज्ञों की भविष्यवाणी बहुत साधारण थी। लेकिन फिल्म ने इन सभी अनुमानों को नकारते हुए महज़ तीन दिनों में लगभग ₹59.9 करोड़ की कमाई कर डाली।
पहले दिन – ₹10.7 करोड़,दूसरे दिन – ₹20.2 करोड़,तीसरे दिन – ₹29 करोड़ यह आँकड़े न केवल प्रभावशाली हैं, बल्कि इस बात के साक्ष्य हैं कि दर्शक आज भी गंभीर और प्रेरक विषयवस्तु को अपनाते हैं, बशर्ते प्रस्तुति सशक्त हो।
अभिनय: अनुभवी और नवोदित दोनों की चमक
आमिर खान की अदाकारी में वह परिपक्वता है जो किसी विषय को बोझिल होने से बचा लेती है। वहीं जेनेलिया डिसूजा का सौम्य प्रदर्शन फिल्म को संतुलन देता है। लेकिन इस फिल्म की असली उपलब्धि है इसके 10 नवोदित कलाकार, जिनके प्रदर्शन ने दर्शकों के दिलों को छू लिया है। बच्चों की मासूमियत, संघर्ष और समाज के साथ उनका टकराव — इन सबको इतने भावनात्मक और सजीव ढंग से चित्रित करना आसान नहीं, लेकिन निर्देशक ने यह काम बख़ूबी किया है।
एक सिने-शिक्षण का माध्यम
‘सितारे ज़मीन पर’ केवल एक फिल्म नहीं है। यह एक सामाजिक टिप्पणी, एक भावनात्मक दर्पण, और एक प्रेरणादायक मार्गदर्शक है। यह फिल्म शिक्षा, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों और माता-पिता की भूमिका पर सार्थक प्रश्न उठाती है।
साथ ही यह दर्शाती है कि कैसे सिनेमा, यदि चाहे, तो समाज में चेतना जगा सकता है। ‘सितारे ज़मीन पर’ हमें याद दिलाती है कि भारतीय सिनेमा में आज भी संवेदना बची है। व्यावसायिकता की दौड़ में भी कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं जो दिल जीतने आती हैं — और जीतकर लौटती हैं।