खाना खजाना
हिन्द सागर प्रालोका श्रीनगर संवाददाता चन्दन सेठी।
कश्मीर, वाजवान कश्मीरी खानपान की एक विशेष परंपरा है, जो न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि इसके पीछे एक समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। यह विशेष रूप से कश्मीर की ठंडी जलवायु के लिए आदर्श है। जहां ये मसालेदार और पौष्टिक व्यंजन शरीर को गर्म रखने में मदद करते हैं। वाजवान में इस्तेमाल होने वाले मसाले जैसे दालचीनी, इलायची, लौंग और अदरक विशेष रूप से कश्मीरी पद्धति में तैयार होते हैं और इनके संयोजन से एक अद्वितीय स्वाद का अनुभव होता है। यह भोजन न केवल संपूर्णता का एक अनुभव करता है, बल्कि इसे खाने के दौरान परिवार और दोस्तों के साथ बंधन को भी मजबूत बनाता है।
वाजवान का एक और महत्वपूर्ण पहलू इसका प्रस्तुतीकरण है। यह भोजन अक्सर कई परतों में परोसा जाता है। जिसमें विभिन्न डिशेज एक दूसरे के साथ सामंजस्य बनाते हैं। आमतौर पर इसे एक बड़े थाल में परोसा जाता है, जिसमें सभी डिशेज को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। खाने का यह तरीका न केवल खाने को और अधिक रोचक बनाता है, बल्कि यह एक सामूहिक अनुभव भी प्रदान करता है, जहां लोग एक साथ बैठकर इस विशेष भोजन का आनंद लेते हैं। इस परंपरा को निभाने के लिए कश्मीरी परिवार अक्सर अपने मेहमानों का स्वागत करते हैं और उन्हें वाजवान का स्वाद चखने का अवसर देते हैं।
आधुनिक समय में, जबकि हमारी जिंदगी में तेजी आ गई है, वाजवान की परंपरा को बनाए रखने की कोशिश जारी है। कई रेस्तरां और कैफे अब वाजवान का विशेष मेन्यू पेश करते हैं, ताकि लोग इस खास कश्मीरी स्वाद का आनंद उठा सकें। इसके अलावा, कई लोग अब वाजवान की रेसिपीज को घर पर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे यह परंपरा जीवित रहती है। इस प्रकार, वाजवान न केवल एक भोजन है, बल्कि यह कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।