अशोक कुमार सिंह, नई दिल्ली | हिन्द सागर प्रलोका ,लोकसभा की कार्यवाही और सरकार की नीतियों को लेकर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा व्यक्त की गई चिंताएं हमारे लोकतांत्रिक ढांचे में विपक्ष की सक्रिय और सजग भूमिका को रेखांकित करती हैं। मणिपुर हिंसा, महिला सुरक्षा और न्यायिक व्यवस्था जैसे गंभीर विषयों पर उनका प्रश्न करना यह दर्शाता है कि लोकतंत्र में सत्ता से सवाल पूछना विपक्ष का नैतिक और संवैधानिक दायित्व है।
प्रियंका गांधी का यह वक्तव्य — “जब सरकार सवालों से भागेगी, तो देश की जनता जवाब माँगेगी” — लोकतांत्रिक चेतना का सशक्त संकेत है, जो न केवल सत्ताधारी दल को उत्तरदायी बनाता है, बल्कि नागरिकों को भी जागरूक करता है।
हालांकि, दुर्भाग्य की बात है कि लोकसभा जैसी सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था में बहस का स्तर अपेक्षित गरिमा तक नहीं पहुँच पा रहा है। आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ने नीति-निर्धारण और जनहितकारी विमर्श को पीछे धकेल दिया है।
ऐसे में यह अत्यंत आवश्यक है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही संयम और उत्तरदायित्व का परिचय दें। लोकतंत्र की मजबूती सार्थक संवाद और पारदर्शिता से ही संभव है। संसद का मंच केवल सत्ता प्रदर्शन का नहीं, बल्कि जनता के मुद्दों पर गंभीर मंथन का होना चाहिए।
यदि लोकतंत्र को जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखना है, तो सभी पक्षों को लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करते हुए, जनता की आवाज़ को प्राथमिकता देनी होगी। यही लोकतंत्र की सच्ची सेवा होगी।


