समीक्षा के लिए समिति गठित, मराठी भाषा को प्राथमिकता देने का आश्वासन
मुंबई। हिन्द सागर प्रालोका,राज्य : महाराष्ट्र | ज़िला : मुंबई | स्रोत : एजेंसी न्यूज़ , महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में लागू की गई ‘श्री-भाषा (त्रिभाषा) नीति’ पर फिलहाल रोक लगाने का बड़ा निर्णय लिया है। यह फैसला राज्य भर में इस नीति के खिलाफ उठी आवाज़ों और विपक्षी दलों के विरोध को देखते हुए लिया गया है। खासतौर पर शिवसेना (UBT) और अन्य क्षेत्रीय दलों ने इस नीति को “हिंदी थोपने की कोशिश” बताया था।
सरकार द्वारा 16 अप्रैल और 17 जून को जारी किए गए दो शासन निर्णय (Government Resolutions – GRs) को रद्द कर दिया गया है। इन आदेशों के अनुसार, राज्य के स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में लागू किया जाना था।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि इस नीति की समीक्षा के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता डॉ. नरेंद्र जाधव करेंगे। समिति राज्य में त्रिभाषा प्रणाली के व्यवहारिक पक्षों की जांच कर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी।
जनता और विपक्ष का जोरदार विरोध
यह नीति लागू होते ही राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में नाराज़गी फैल गई।
पुणे सहित राज्य के कई हिस्सों में शिवसेना (UBT) और मराठी संगठनों ने GR की प्रतियां जलाकर विरोध प्रदर्शन किए।
उद्धव ठाकरे ने कहा, “मराठी भाषा के साथ अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकार ने देर से सही, लेकिन सही निर्णय लिया है। यह मराठी अस्मिता की जीत है।” संजय राउत ने आंदोलन को फिलहाल स्थगित करते हुए कहा कि यह सिर्फ शुरुआत है, यदि भविष्य में ऐसी कोई नीति फिर आती है, तो विरोध और भी तीव्र होगा।
शिक्षा विशेषज्ञों की राय
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों और अभिभावकों ने इस बात पर चिंता जताई थी कि कक्षा 1 से तीन भाषाएं पढ़ाना छात्रों पर अतिरिक्त दबाव डालेगा। उनका मानना है कि भाषा के नाम पर पढ़ाई को बोझिल न बनाया जाए।
सरकार का स्पष्टीकरण
मुख्यमंत्री फडणवीस ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अंतर्गत लिया गया था और सरकार का इरादा हिंदी थोपना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय मानकों का पालन करना था। उन्होंने कहा कि मराठी भाषा राज्य की आत्मा है और इसकी प्राथमिकता बनी रहेगी।
हिन्द सागर प्रालोका, की यह विशेष रिपोर्ट बताती है कि जनता की आवाज़ और लोकतांत्रिक विरोध से सरकारों को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। मराठी भाषा की रक्षा और छात्रों के हित में लिया गया यह निर्णय राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।